एक सोच
पतझढ़ का मौसम
अभी पतझड़ का मौसम चल रहा है।इस मौसम में जाने कितने अबघे पत्ते सुख जाते है।वे तो अपने जीवन के लास्ट दिनों में चलरही है।पर है कि नही अभी तो वो झड़ना ही नही चाहते है ।अपने जीवन की इस सच्चाई को स्वीकार ही नही करना चाहते है ।वो ये नही समझ रहे है कि उनका वक़्त नज़दीक है।उनकी जगह नए जवान पत्ते लेंगे । अंत मे नए पत्ते उसे धक्के देकर निकल देते है और हवा उसे उड़ाकर ले जाती है ।उसके जीवन का अंत एक दर्दभरा होता है ।अतः,
"व्यक्ति को कभी न कभी अपने जीवन की सच्चाई को स्वीकार करना ही पड़ता है। व्यक्ति समय रहते जान जाता है कि यही उसके जीवन का यथार्थ है और इसे उसे स्वीकार करना ही होगा।"
"व्यक्ति को कभी न कभी अपने जीवन की सच्चाई को स्वीकार करना ही पड़ता है। व्यक्ति समय रहते जान जाता है कि यही उसके जीवन का यथार्थ है और इसे उसे स्वीकार करना ही होगा।"
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