मन के भाव
मुझे न आती तुकबंदी और ,
न आता लय बनाना ।
कर देता हूं अपने भाव बया ,
लफ़्ज़ों में न सही ,शब्दों में ही सही।
पर क्या करूँ? न रुकते भाव यह मन के,
निकल पडते है दिल को तोड़ के,
पर फिर भी मैने वह सुराख था वापस बनाया पर फिर क्या करूँ भावो की गति है,इतनी
अधिक,
तोड़ के निकल आते है दिल को,
पर अब सीखूगा इनके साथ साथ चलना।
इनके साथ तल से ताल मिलना।
मुझे न आती तुकबन्दी और न आती
लय बनाना।
( दीपक )
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